
मास्टर अलंकार जोशी।
बॉलीवुड फिल्मों में कई चाइल्ड आर्टिस्ट नजर आते हैं, कई काफी पॉपुलर हो जाते हैं। इन स्टारकिड्स को लोग काफी पसंद करते हैं और लोग आस लगा लेते हैं कि ये बड़े होकर नामी एक्टर्स बनेंगे। कई चाइल्ड आर्टिस्ट आगे चलकर नामी एक्टर बनते हैं, कई स्ट्रगल करते रह जाते हैं तो कई ऐसे भी हैं जो एक दो फिल्में कर के अपनी नई जिंदगी शुरू कर देते हैं। आज आपको ऐसे ही एक चाइल्ड आर्टिस्ट के बारे में बताएंगे, जो ‘शोले’ में नजर आए थे। ‘शोले’ की रिलीज को अब 50 साल बीत रहे रहे हैं, फिल्म के ज्यादातर कलाकार या तो काफी बुजुर्ग हो गए हैं या इस दुनिया को अलविदा कह गए। दीपक को रोल में नजर आए चाइल्ड आर्टिस्ट अब करोड़ों के मालिक हो चुके हैं। वो भारत छोड़कर अमेरिका में अपना घर बसा चुके हैं। चलिए आपको विस्तार से बताते हैं, ये क्या करते हैं, इनके परिवार में कौन-कौन हैं और अब इनकी जिंदगी लाइमलाइट से दूर कैसी है।
इन फिल्मों से मिली पहचान
कभी बॉलीवुड के सबसे मशहूर बाल कलाकारों में से एक रहे अलंकार जोशी आज लाइमलाइट से दूर, अमेरिका में एक सुकून भरी जिंदगी जी रहे हैं। 1970 के दशक में मास्टर अलंकार नाम ऐसा था, जिसे शायद ही कोई फिल्मप्रेमी भूल पाए। ‘सीता और गीता’ (1972), ‘मजबूर’ (1974) और ‘दीवार’ (1975) जैसी फिल्मों में उन्होंने अपनी मासूमियत और सधी हुई अदाकारी से लोगों के दिल जीत लिए। अक्सर उन्हें ‘युवा अमिताभ बच्चन’ की भूमिका में देखा जाता था और उन्होंने उस उम्र में भी जिस गहराई से अभिनय किया, वह काबिले-तारीफ था।
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दीवार के सेट की वो खास याद
उनकी बहन और जानी-मानी अभिनेत्री पल्लवी जोशी ने एक साक्षात्कार में बताया था कि कैसे अलंकार को ‘दीवार’ में काम मिला। पल्लवी ने बताया, ‘हम यश चोपड़ा जी से मिलने सेट पर गए थे। अमित जी (अमिताभ बच्चन) ने दादा (अलंकार) को देखते ही कहा -‘अरे, कैसे हो?’ और फिर यश जी से कहा कि इन्हें मेरा बचपन वाला रोल दे दो।’ उन्होंने ये भी साझा किया कि अलंकार ने किस तरह अमिताभ बच्चन की बारीकियों को अपने अभिनय में उतारा। उन्होंने कहा, ‘वो अमिताभ के सीन मैं फेंके हुए पैसे नहीं उठाता को गौर से देख रहे थे। जब अमिताभ अपनी शर्ट की गांठ खोल रहे थे तो अलंकार ने यश जी से पूछा कि क्या मैं भी वैसा कर सकता हूं? यह उस बच्चे की गहरी समझ और ऑब्जर्वेशन की मिसाल थी।’
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चकाचौंध के पीछे की हकीकत
भले ही पर्दे पर सबकुछ चमकदार लगता हो, लेकिन एक बाल कलाकार के रूप में काम करना आसान नहीं होता। टाइम्स नाउ को दिए एक पुराने इंटरव्यू में अलंकार ने कहा था, ‘लंबे घंटों की शूटिंग, रात भर जागना और हर जगह भीड़ का सामना करना, ये सब तब आसान नहीं था। मेरे माता-पिता ने हमेशा मुझे जमीन से जुड़ा रहना सिखाया। तारीफों में बह जाना कभी विकल्प नहीं था।’ बचपन की शोहरत को दोहराना अक्सर मुश्किल होता है और यही अलंकार के साथ भी हुआ। बड़े होने पर उन्होंने अभिनय में वापसी की कोशिश की, लेकिन उन्हें जल्द ही ये एहसास हो गया कि बाल कलाकार के रूप में जो जादू था, वह अब वैसा नहीं रहा। उन्होंने निर्देशन और निर्माण की दुनिया में भी हाथ आजमाया और मराठी फिल्मों में योगदान दिया, मगर उनका दिल कैमरे के पीछे नहीं था।
पढ़ाई, प्लान बी और नई शुरुआत
अलंकार ने अपने फिल्मी करियर के दौरान भी पढ़ाई को प्राथमिकता दी। एक वक्त ऐसा आया जब उन्होंने एक्टिंग से पूरी तरह दूरी बनाकर सॉफ्टवेयर प्रोग्रामिंग की ओर रुख किया। वो अमेरिका चले गए और दो साल तक एक सॉफ्टवेयर कंपनी में नौकरी की। इसके बाद उन्होंने एक दोस्त के साथ मिलकर खुद की टेक्नोलॉजी कंपनी शुरू की। धीरे-धीरे उन्होंने अमेरिका में खुद के लिए एक नई दुनिया बसा ली, जहां ना कैमरे की चकाचौंध थी, न फिल्मी भीड़। आज अलंकार जोशी 35 सालों से अमेरिका में हैं। उनकी जिंदगी में अब उनके तीन बच्चे जुड़वां बेटियां और एक बेटा है।
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कौन हैं बेटी और बहन?
उनकी एक बेटी अनुजा जोशी जानी-मानी अभिनेत्री हैं, जिन्होंने ‘हैलो मिनी’ जैसी थ्रिलर वेब सीरीज में काम किया है। उनके बेटे को संगीत में दिलचस्पी है और वो एक गायक बनना चाहता है। पल्लवी जोशी उनकी बहन नेशनल अवॉर्ज विनिंग एक्ट्रेस हैं। उनके पति विवेक अग्निहोत्री ‘द कश्मीर फाइल्स’ जैसी चर्चित फिल्म के निर्देशक हैं। 2024 में दिए गए एक इंटरव्यू में अलंकार ने कहा था, ‘मैं खुद को एक ऐसे खिलाड़ी की तरह महसूस करता हूं जो अब मैदान में नहीं है, लेकिन लोग उसकी पुरानी परफॉर्मेंस को याद करते हैं।’ जब उनसे पूछा गया कि क्या उन्हें फिल्म इंडस्ट्री और शोहरत की कमी महसूस होती है तो उन्होंने मुस्कराते हुए जवाब दिया, ‘नहीं, क्योंकि मैं हमेशा उस दुनिया के करीब रहा हूं। बस अब मंच कुछ और है।
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