
सितारे जमीन पर 20 जून को सिनेमाघरों में रिलीज हुई है।
सिनेमा की एक खासियत है, ये अक्सर हमें भावनाओं से भर देता है और हमें एक अलग ही दुनिया में ले जाता है। लेकिन, शायद ही कोई फिल्म मनोरंजन से ज्यादा कुछ करती है। कुछ फिल्में बदलाव लाती हैं, यह दिमाग खोलती हैं, पूर्वाग्रहों को तोड़ती हैं और समझ के पुल बनाती हैं और हाल ही में रिलीज हुई आमिर खान की ‘सितारे जमीन’ ने भी कुछ ऐसा ही कर दिखाया। इस फिल्म ने चुपचाप, लेकिन शक्तिशाली तरीके से साबित कर दिया है कि कला सकारात्मक सामाजिक बदलावों में कैसे योगदान दे सकती है।
इस फिल्म के प्रभाव की गहराई हाल ही में तब सामने आई जब आमिर खान को एक दिव्यांग व्यक्ति के भाई से दिल को छू लेने वाला, इमोशनल लेटर मिला। पत्र में लिखे दिल को छू लेने वाले शब्द आमिर खान को इतने गहरे तक छू गए कि उनकी आंखों में आंसू आ गए। ये लेटर दिखाता है कि ‘सितारे जमीन पर’ का दर्शकों पर क्या प्रभाव रहा। यह पत्र इस बात पर प्रकाश डालता है कि सितारे जमीन पर सिर्फ एक फिल्म नहीं है, यह अनगिनत परिवारों के जीवन को दर्शाता एक आईना है और लंबे समय से अनसुने अनुभवों को आवाज देती है।
लेटर में बताया गया है कि कैसे इस फिल्म ने सिनेमाहॉल में दर्शकों को प्रभावित किया। जैसे ही फिल्म खत्म हुई, क्रेडिट रोल हुआ और थिएटर की लाइटें धीरे-धीरे वापस जलने लगीं, एक परिवार के सामने मार्मिक क्षण आ गया। जबकि दूसरे लोग बातचीत कर रहे थे और बाहर निकलने के लिए आगे बढ़ रहे थे, सेरेब्रल पाल्सी से पीड़ित एक स्पेशली एबल्ड व्यक्ति अब भी खाली स्क्रीन को निहार रहा था। उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे और फिर वह अपने छोटे भाई की ओर मुड़ा और उसने जो बात कही, उसने उसके भाई को झकझोर कर रख दिया।
यह फुसफुसाहट एक सवाल से कहीं अधिक थी, यह एक पुष्टि थी। यह वह क्षण था जब सितारे जमीन पर का असाधारण प्रभाव स्पष्ट हो गया। फिल्म निर्माताओं ने न केवल एक फिल्म बनाई थी, उन्होंने एक ऐसी दुनिया का द्वार खोला था जिसे शायद ही कभी देखा गया हो। इस फिल्म ने समाज और उसकी असंख्य परतों खोलने का काम किया और अक्सर गलत समझे जाने वाले जीवन की सुंदरता और जटिलता को दिखाने की कोशिश की गई।
लेटर में लिखा है-
डियर आमिर सर और आमिर खान प्रोडक्शन्स टीम,
इस शनिवार, जब फिल्म खत्म हुई। लाइट्स धीरे-धीरे जलने लगीं। हमारे आस-पास, थिएटर खाली हो गया था और लोग बातें कर रहे थे, फोन चेक कर रहे थे, घर जा रहे थे। लेकिन पीछे से तीसरी लाइन में, हम चुपचाप बैठे रहे। मेरे बड़े भाई, जो सेरेब्रल पाल्सी से पीड़ित हैं और मानसिक और शारीरिक रूप से विकलांग हैं, लगातार खाली स्क्रीन को घूरते रहे। एक दम चुप, उनकी आंखों से आंसू बह रहे थे। फिल्म खत्म होने के बाद वह मेरी तरफ मुड़े और फुसफुसाते हुए उन्होंने जो शब्द कहे, वो मेरे साथ उम्र भर रहेंगे- “ये बिलकुल हम जैसे हैं ना?” उनके ये शब्द सुनने के बाद मुझे समझ आया कि आपने क्या किया है। आपने सिर्फ एक फिल्म नहीं बनाई। आपने हमारी दुनिया के लिए एक दरवाजा खोला है और पूरे देश को अंदर बुलाया है।
स्क्रीन पर प्रतिनिधित्व की शक्ति
33 सालों से मेरा भाई एक ऐसी दुनिया में जी रहा है जो उसके लिए बिलकुल भी उपयुक्त नहीं है। सिनेमा में उसके जैसे लोगों को हमेशा या तो दया के पात्र या फिर किसी ऐसी प्रेरणा के रूप में दिखाया गया है जो पॉसिबल नहीं है। कभी एक ऐसे व्यक्ति के तौर पर नहीं दिखाया गया, जो सपने देखता है, जिसे डर लगता है या फिर अपनेपन की साधारण सी इच्छा रखता है। इसी बीच आपकी फिल्म (सितारे जमीन पर) आई और 155 मिनट में, आपने वह कर दिखाया जो दशकों से चले आ रहे जागरूकता अभियान भी नहीं कर सके। आपने डिसएबिलिटी को एक मेडिकल कंडीशन के रूप में नहीं, बल्कि दुनिया को अनुभव करने के एक अलग तरीके के रूप में दिखाया है। आपने हमारे जैसे परिवारों को बहादुर या टूटे हुए परिवारों के रूप में नहीं, बल्कि ऐसे साधारण लोगों की तरह पेश किया है जो एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी प्यार से भरे हैं।
ये फिल्म अपने आप में एक परफेक्शन थी, जिसका हर फ्रेम, हर भावना, एक्टिंग नहीं बल्कि सच जैसा महसूस हुआ। लेकिन, 5 सीन ऐसे थे जिन्होंने हमें झकझोरकर रख दिया। इन्हें देखकर हम हैरान थे। इसने हमें इस तरह से हिलाकर रख दिया कि शब्दों में इस भावना को बयां कर पाना मुश्किल है।
1) जब आपकी फिल्म में करतार पाजी कहते हैं- “मुश्किल तो होती है परिवारों में, लेकिन ये घर कभी बूढ़े नहीं होते, क्योंकि ये बच्चे हमेशा अपना बचपन भर देते हैं। जान बसती है इनके परिवार की इनमें।” हमारे लिए यह लाइन कोई डायलॉग नहीं थी। यह एक पहचान थी। उस एक पल में, आपने हमारी जिंदगी के कई सालों को कैद कर लिया। क्योंकि यही हमारा घर है। यही वह चीज है जो मेरा भाई हमारी जिंदगी में लाता है। मासूमियत, खुशी और बचपन जैसा जादू जो कभी फीका नहीं पड़ता। हमारे आस-पास के ज्यादातर लोग इसे कभी नहीं समझ सकते कि जिसे वे बोझ कहते हैं असल में वह हमारे लिए सबसे बड़ा आशीर्वाद रहा है। हम सिर्फ सर्वाइव नहीं कर रहे, हम फल-फूल रहे हैं, एक ऐसी खुशी के साथ जिसे ज्यादातर लोग कभी नहीं पहचान सकेंगे।
2) जब आपके किरदार की मां कहती है, “किसी न किसी को तो लड़ना पड़ता है पूरी दुनिया से।” ये पूरा सीन मेरे अंदर समा गया। क्योंकि मैंने उस लड़ाई को बेहद करीब से देखा है। 33 सालों से मेरे माता-पिता भैया के साथ खड़े हैं। वह उनकी जरूरतों, उनकी गरिमा और सबसे ऊपर उनके खुद के होने के अधिकार के लिए हमेशा खड़े रहे हैं। उन्हें अपने परिवार के अंदर भी उस प्यार का बचाव करना पड़ा, जब ज्यादातर लोग कहते थे- “तुम लोग पागल हो जो इसको ठीक करने में इतना पैसा और समय बर्बाद कर रहे हो।” इन सबके बाद भी मेरे माता-पिता ने कभी हार नहीं मानी। उन्होंने लोगों के जजमेंट के बजाय हमेशा प्यार को चुना। उम्मीद को चुना। हर बार। आपने उस एक पल में एक ऐसी सच्चाई को कैद कर लिया, जिस पर ज्यादातर लोगों का ध्यान ही नहीं जाता। ऐसा लगा जैसे आप हमारी कहानी कह रहे हैं।
3) जिस तरह से आपका किरदार नए कोच को बताता है कि, मेरे भाई जैसे बच्चों को समझने और उनके साथ काम करने के लिए सही तरीके के बारे में जानना चाहिए, आप बहुत ही शानदार थे। शायद ही कभी हम किसी को इतनी स्पष्टता और प्यार के साथ यह बताते हुए देखते हैं कि मेरे भाई जैसे लोगों को सपोर्ट करने के लिए वास्तव में क्या करना चाहिए। दबाव के साथ नहीं, बल्कि धैर्य के साथ उनका सपोर्ट करना चाहिए। उन्हें ठीक करके के बारे में नहीं, बल्कि वह जिस स्थिति में हैं, उसमें उनसे मिलें।
4) जब करतार पाजी ने डिसएबल्ड लोगों के ‘नॉर्मल’ न होने के कमेंट पर रिएक्शन दिया तो उन्होंने अपनी आवाज ऊंची नहीं की और न ही बहस की। उन्होंने बस प्यार, स्पष्टता और सच्चाई के साथ ‘नॉर्मल’ को फिर से परिभाषित किया। ‘सबका अपना-अपना नॉर्मल होता है।’ उस एक लाइन ने कुछ ही शब्दों में सालों के कलंक को खत्म कर दिया। इस एक लाइन ने मेरे जैसे परिवारों को वह दिया, जिसकी हम सालों से तलाश कर रहे थे। एक आवाज। अपना सिर ऊंचा करके चलने का तरीका, खुद को समझाने का नहीं। जजमेंट पर जवाब बचाव करके नहीं, बल्कि शांत सच के साथ देने का तरीका। इस लाइन ने हमें याद दिलाया कि दुनिया जिसे ‘नॉर्मल’ कहती है, वह कम्फर्ट का बहुत ही संकीर्ण और डरावना वर्जन है और हर कोई, जिसमें मेरे भाई जैसे लोग भी शामिल हैं, खुद को स्वीकार किए जाने के हकदार हैं, न कि किसी के साथ तुलना के। मुझे नहीं पता कि ये लाइन कितने लोगों को प्रभावित करेगी, लेकिन मैं इसके लिए बहुत आभारी हूं कि इसे बिना किसी खेद के, एक थिएटर में, 140 करोड़ लोगों के सामने साफ शब्दों में कहा गया। ये बहुत मायने रखता है।
5) इस फिल्म की वो बात जिसने हमें गहराई से छुआ, वह ये थी कि कैसे फिल्म ने चुपचाप, लेकिन एक शक्तिशाली तरीके से बताया कि हम भी इन स्पेशली एबल्ड बच्चों से बहुत कुछ सीख सकते हैं। एक ऐसी दुनिया जो स्वार्थी और ट्रांजेक्शनल लगती है, उसमें ये बच्चे बिना किसी शर्त के प्यार करते हैं, बिना किसी हिसाब-किताब के दूसरों पर भरोसा करते हैं और बिना किसी जलन की भावना के जीते हैं। ये फिल्म याद दिलाती है कि इन बच्चों को ‘ठीक करने’ या ‘सिखाने’ की कोशिश करने की जगह, हमें ये सीखने की जरूरत है कि दयालुता और असल में मनुष्य होने का क्या मतलब है।
कुछ ऐसा जो आपको नहीं पता
कुछ ऐसा है जो आप नहीं जानते। 28 साल पहले, आपकी एक शूटिंग के दौरान छोटा लड़का आपसे मिला था। आप उसके साथ शांत और बहुत ही प्यार से पेश आए। आपने उसके साथ एक फोटो ली और एक मोमेंट साझा किया। वह लड़का आज भी उस याद को संजोए हुए है। इस शनिवार को वही लड़का, जो अब एक आदमी बन चुका है, आपसे फिर से मिला। हालांकि, इस बार मुलाकात व्यक्तिगत नहीं थी। इस बार ये व्यक्ति आपसे आपकी कला के जरिए मिला। और ठीक 28 साल पहले की तरह, आपने उसे ऐसा महसूस कराया जैसे उसकी भी वैल्यू है, उसे भी देखा और समझा जाता है। उस दिन की तस्वीर हमारे लिविंग रूम में अब भी रखी है। कभी-कभी मैं उसे इसे देखते हुए, देश के सबसे बड़े स्टार्स में से एक की दयालुता को याद करके मुस्कुराते हुए पाता हूं।
हम बांद्रा में आपके घर और ऑफिस के बहुत पास रहते हैं, इतने पास कि मेरे भाई ने अक्सर आपकी कार को गुजरते देखा है, और जब भी वह आपकी कार गुजरते हुए देखता है तो उसकी आंखें उत्साह से चमक उठती हैं। इस शुक्रवार, 27 जून को वह 33 साल को हो रहा है। और आपकी फिल्म उसे पहले ही इतनी खुशी और पहचान दे चुकी है, जितनी हम आज तक नहीं दे सके। आपसे थोड़ी देर भी मिलने का मौका उसके जन्मदिन को यादगार बना देगा। सिर्फ एक एक्टर के तौर पर ही नहीं बल्कि एक इंसान के रूप में भी वह सालों से आपका प्रशंसक रहा है। अगर आप उससे मिलते हैं, यह उसके लिए एक सपने के सच होने जैसा महसूस होगा।
आपने वास्तव में क्या किया है
आपकी फिल्म देखने के बाद लोग सिर्फ भिन्नता का जश्न मनाएंगे। वे विकलांगता को सीमा के रूप में नहीं बल्कि एक अलग तरह की ताकत के रूप में देखेंगे। ये सिर्फ एक फिल्म नहीं है, बल्कि कहानी के जरिए राष्ट्र निर्माण है।
लहर जैसा प्रभाव
अभी, पूरे भारत के घरों में आपकी फिल्म की वजह से बातचीत हो रही है। माता-पिता अपने दिव्यांग बच्चों को नई नजर से देख रहे हैं। भाई-बहन अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए शब्द खोज रहे हैं, जिन्हें वे हमेशा अपने अंदर रखते थे। शिक्षक अपने तरीकों पर सवाल कर रहे हैं। समाज अपने पूर्वाग्रहों का सामना कर रहा है। आपने मनोरंजन के नाम पर एक आंदोलन खड़ा किया है।
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। भगवान आपको और पूरी टीम को आशीर्वाद दें, क्योंकि आपने दुनिया को इस फिल्म के रूप में कुछ बहुत ही अच्छा दिया है।
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‘सितारे जमीन पर’ एक फिल्म की सीमाओं से आगे बढ़कर उम्मीद और समझ की किरण बन गई है। इसने न केवल मनोरंजन किया है, बल्कि अनगिनत परिवारों को शिक्षित, प्रेरित और सबसे महत्वपूर्ण रूप से उनके अनुभवों को मान्यता भी दी है। विकलांगता को इतनी प्रामाणिकता और करुणा के साथ प्रस्तुत करके, फिल्म ने एक महत्वपूर्ण बातचीत छेड़ दी है और अधिक समावेशी दृष्टिकोण को बढ़ावा दिया है। इस सिनेमाई उपलब्धि को एक शक्तिशाली और बहुत जरूरी सामाजिक आंदोलन की शुरुआत कहना वास्तव में उचित है।
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