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कौन था SP चौधरी असलम, ‘धुरंधर’ में भरेगा हुंकार

कौन था SP चौधरी असलम, ‘धुरंधर’ में भरेगा हुंकार

Image Source : STILL FROM DHURANDHAR TRAILER
संजय दत्त।

बीते दिन यानी 18 नवंबर को ‘धुरंधर’ का ट्रेलर रिलीज किया गया। रणवीर से ज्यादा कई और किरदारों की चर्चा शुरू हो गई। इसमें सबसे ज्यादा चर्चा में आने वाल किरदार है चौधरी असलम का, जिसे संजय दत्त निभा रहे हैं। इस किरदार का परिचय ही ये कहकर दिया जाता है, ‘बहुत साल पहले एक शैतान और जिन में जबरदस्त सेक्स हुआ, नौ महीने बाद जो पैदा हुआ उसका नाम पड़ा चौधरी असलम।’ ये डायलॉग कान में बार-बार गूंजता है और सोचने पर मजबूर करता है कि सफेद पठानी सूट, बड़ी दाढ़ी और धुआंधार गोली बरसाता ये शख्स आखिर है कौन? ट्रेलर में सिर्फ इतना बताया गया कि ये पाकिस्तानी पुलिस का एक एसपी रहा है। संजय दत्त के लुक और उनके डायलॉग को सुनने के बाद ये तो जाहिर हो गया कि पाकिस्तान के परिपेक्ष्य में ये शख्स काफी प्रभावी और दमदार रहा है। आखिर ये कौन है और इसके नाम से तालिबानी क्यों खौफ खाते थे, जानने के लिए नीचे स्क्रोल करें।

कौन था चौधरी असलम?

चौधरी असलम खान, कराची पुलिस का वह नाम जिसे कुछ लोग सुरक्षा का साया मानते थे और कुछ लोग डर की एक चलती-फिरती परिभाषा। उनके हिंसक अंत ने पाकिस्तानी पुलिस बल का मनोबल हिला दिया था, लेकिन इसे देखकर किसी करीबी को हैरानी नहीं हुई। उनके एक सहयोगी ने रोते हुए कहा था, ‘देर-सबेर यही होना था… उन्होंने खुद इस राह का चुनाव किया था।’ चौधरी असलम पाकिस्तान के एक बेहद सफर-नामा पुलिस अधिकारी थे, जिन्होंने माफिगिरी, आतंकवाद और गैंस्टर गिरोहों के खिलाफ अपनी पहचान बनाई। तीन दशक तक कराची की अपराधी दुनिया से लड़ने वाले एसपी मोहम्मद असलम, जिन्हें आमतौर पर चौधरी असलम कहा जाता था ने अपने सख्त रवैये, विवादित कार्रवाइयों और निडर पुलिसिंग के लिए हमेशा सुर्खियों में रहे। उनके लिए पुलिसिंग का सिद्धांत सरल था, ‘आग का जवाब आग से।’

क्या था असलम का बैकग्राउंड?

चौधरी मोहम्मद असलम खान का जन्म 1963 में मंसेहरा जिसे के अर्गुशल गांव में हुआ। स्वाती कबीले से असलम आते थे। कराचीं यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करते हुए ही उन्होंने पुलिस अफसर बनने की ठानी। 1987 में सिंध पुलिस में उनकी भर्ती हुई। शुरुआत में उन्होंने असिस्टेंट सब-इंस्पेक्टर (ASI) के रूप में काम किया और बाद में विभिन्न पोस्ट पर तैनात रहे। कराची और बलूचिस्तान दोनों में उनके नाम का सिक्का चला। उन्होंने “Lyari Task Force” का नेतृत्व किया, खासकर Lyari (कराची) में गैंगस्टर और अपराधी गिरोहों के खिलाफ कार्रवाई में। 2010 में उन्हें CID में Anti-Extremism Cell का प्रमुख बनाया गया।

क्यों कहलाता था तालिबानी हंटर?

उनका नाम इस लिए तालिबानी हंटर के रूप में जाना गया क्योंकि वे पाकिस्तान में तालिबान और अन्य चरमपंथियों के खिलाफ बहुत सक्रिय रहे थे। मीडिया रिपोर्ट्स में बताया जाता है कि उन्होंने न केवल आतंकवादियों को गिरफ्तार किया, बल्कि CID सेल्स में तालिबानी बंदियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की थी। उन्होंने कई सुरक्षात्मक ऑपरेशन किए और उनके खिलाफ कई आतंकवादी हमले भी हुए। एक बहुत बड़ी घटना 2011 में हुई थी जब एक आत्मघाती बमबारी में उनकी घर की सामने की दीवार ध्वस्त हो गई थी। उनके करियर के दौरान उन्होंने कई आतंकवादी और चरमपंथी समूहों के सदस्यों पर कार्रवाई की, जैसे TTP ‘तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान’ BLA ‘बलूचिस्तान लिब्रेशन आर्मी’, LeJ ‘लश्कर-ए-झांगवी’ और LeT।

विवादों से भी जुड़ा नाम

1990 के दशक के कराची ऑपरेशन से लेकर 2009 में कुख्यात रहमान डकैत के एनकाउंटर तक और फिर 2012 में ल्यारी ऑपरेशन की अगुवाई, हर मोर्चे पर वे अग्रिम पंक्ति में रहे। हमले उन पर कम नहीं हुए। कई जानलेवा कोशिशें हुईं, कुछ ने उनके घर को उड़ाया, कुछ ने उनके काफिले को निशाना बनाया, लेकिन वह हमेशा बच निकले। उनकी यही जीवटता उन्हें ‘डर्टी हैरी ऑफ कराची’ और ‘पाकिस्तान का सबसे कठोर पुलिस अधिकारी’ जैसे टाइटल दिलाती रही। जितनी असलम को प्रशंसा मिली, उतने ही विवाद भी जुड़े। 1990 के दशक में मुहाजिर कौमी मूवमेंट के कार्यकर्ताओं के कथित फर्जी मुठभेड़ों में मारे जाने के मामलों में उनका नाम खूब उछला। साल 2006 में ल्यारी टास्क फोर्स के प्रमुख के रूप में उन पर मुठभेड़ का नाटक करने का आरोप लगा और उन्हें 16 महीने जेल में भी रहना पड़ा। जमानत पर छूटने के बाद वे फिर उसी तेजी से सेवा में लौट आए, जैसे जेल एक मामूली व्यवधान रहा हो।

हमेशा रहा तालिबानियों के निशाने पर

उनकी लोकप्रियता और खौफ का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 2011 में पाकिस्तान के डिफेंस इलाके में उनके घर पर हुए बम धमाके के बाद भी वे अगले ही दिन सामान्य रूप से काम करते दिखे। उनके एक सहयोगी ने डॉन को बताया, ‘हम हमलों की गिनती खो चुके हैं। शायद पांच… शायद नौ… लेकिन उन्हें फर्क नहीं पड़ता था। वह तभी घटना याद रखते थे जब उनका कोई साथी मारा जाता था।’ 1998 में उन्होंने एयरपोर्ट पर एमक्यूएम के सौलत मिर्जा की गिरफ्तारी की, जिसने बाद में कई हत्याओं का दोष स्वीकार किया। किस्मत का दिलचस्प मोड़ यह रहा कि कुछ सालों बाद वे उसी बिजली कंपनी के मारे गए प्रमुख उमर शाहिद हामिद के बेटे के साथ सीआईडी में करीबी सहयोगी बन गए।

कब हुई मौत?

9 जनवरी 2014 को कई सालों तक मौत को मात देने वाला यह अधिकारी आखिरकार मंगोपीर में हुए बम विस्फोट में शहीद हो गया। तालिबान ने जिम्मेदारी ली और कराची ने एक ऐसा पुलिसवाला खो दिया, जो जितना विवादित था, उतना ही अदम्य। चौधरी असलम का अंत क्रूर था। अब इस शख्स की झलक संजय दत्त बड़े पर्दे पर दिखाने जा रहे हैं। इससे पहले पाकिस्तानी फिल्म ‘चौधरी द मारटियर’ में उनकी कहानी दिखाई जा चुकी है। ‘धुरंधर’ 5 दिसंबर को सिनेमाघरों में रिलीज होगी। फिल्म के ट्रेलर को लोगों का अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है और इस फिल्म से लोगों को काफी उम्मीदें हैं।

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