
राज कपूर
राज कपूर सिर्फ एक अभिनेता, निर्देशक और निर्माता ही नहीं थे, बल्कि सिनेमा की दुनिया में एक दूरदर्शी व्यक्तित्व भी थे। वे आने वाले समय की धड़कनों को पहले ही महसूस कर लेते थे। उनकी यही दूरदर्शिता थी जिसने उन्हें ‘बॉबी’, ‘मेरा नाम जोकर’ और ‘राम तेरी गंगा मैली’ जैसी फिल्मों को समय से पहले बनाने की प्रेरणा दी। आज ही दिन 1988 में इस दुनिया को अलविदा कहने वाले राज कपूर ने सिनेमाई विरासत का ऐसा बीज बोया कि आज उनकी चार पीढ़ियां भी इससे समृद्ध हैं। कहा जाता है कि राज कपूर जो भी करते थे, उसके पीछे एक ठोस सोच और गहरी समझ हुआ करती थी। उनके भीतर जानकारी का अपार भंडार था और वे हर छोटी-बड़ी बात को बारीकी से पकड़ने की काबिलियत रखते थे। प्रयोगधर्मी और संवेदनशील फिल्म निर्माता के रूप में उन्होंने जो योगदान दिया, वह सिनेमा के इतिहास में अमिट है। राज कपूर 2 जून 1988 को इस दुनिया को अलविदा कह गए, लेकिन उनका सिनेमाई सफर आज भी प्रेरणा देता है।
खुद के दम पर बनाई अपनी पहचान
आज भले ही मल्टीप्लेक्स का दौर है, लेकिन एक समय था जब सिंगल स्क्रीन थिएटरों का बोलबाला था। कुछ थिएटर तो इतने प्रतिष्ठित थे कि उनकी पहचान खुद एक इतिहास बन गई। ऐसा ही एक थिएटर था दिल्ली के कनॉट प्लेस में स्थित ‘रीगल सिनेमा’। इस ऐतिहासिक थिएटर की अहमियत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वहां भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से लेकर लॉर्ड माउंटबेटन तक जैसी हस्तियां फिल्में देखने आया करती थीं। राज कपूर ‘रीगल सिनेमा’ को अपना लकी चार्म मानते थे। दिल्ली के कनॉट प्लेस में स्थित यह ऐतिहासिक सिनेमा हॉल कभी एक अहम लैंडमार्क हुआ करता था, जिसकी अपनी एक अलग ही शान और रुतबा था। हिंदी सिनेमा के महान शोमैन राज कपूर का इस थिएटर से गहरा लगाव था।
खुद बताया था हवन का किस्सा
कई साल पहले दिए एक इंटरव्यू में रीगल सिनेमा के अकाउंट मैनेजर ए. एस. वर्मा ने बताया था कि राज कपूर अपनी ज्यादातर फिल्मों का प्रीमियर यहीं किया करते थे। फिल्म रिलीज से पहले वे अपने पूरे परिवार के साथ सिनेमा हॉल में हवन करवाते थे। पूरे थिएटर को फूलों से सजाया जाता था, जैसे कोई त्योहार मनाया जा रहा हो। जब फिल्म रिलीज होती, तो रीगल सिनेमा में 10-10 दिन की एडवांस बुकिंग रहती थी, इतनी जबरदस्त उत्सुकता हुआ करती थी दर्शकों में।
बेहतरीन डायरेक्टर के साथ एक दूरदर्शी इंसान थे राजकपूर
राज कपूर न सिर्फ एक क्रिएटिव फिल्ममेकर थे, बल्कि उन्हें कर्म और दर्शन (फिलॉसफी) पर चर्चा करना भी बेहद पसंद था। वे जीवन और सिनेमा को गहराई से समझने वाले कलाकार थे, जो अक्सर अपने विचारों में इन पहलुओं को शामिल किया करते थे। राज कपूर ने 1947 में फिल्म ‘मधुसूदन’ से हिंदी सिनेमा में कदम रखा था। इसके बाद उन्होंने ‘आशियाना’, ‘दास्तान’, ‘श्री 420’, ‘दिल ही तो है’, ‘मेरा नाम जोकर’ जैसी यादगार फिल्में दीं, जो आज भी क्लासिक मानी जाती हैं। नूतन से लेकर नरगिस तक, उनकी ऑनस्क्रीन जोड़ियां दर्शकों के बीच बेहद लोकप्रिय रहीं और हर फिल्म में उन्होंने अभिनय और निर्देशन की नई मिसालें पेश कीं। आज उनकी बर्थएनवर्सरी पर फैन्स ने उन्हें याद किया है।
बीते साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिला था परिवार
बता दें कि कपूर परिवार आज बॉलीवुड के सबसे नामी परिवारों में गिना जाता है। इसका पूरा श्रेय राज कपूर को जाता है। बीते साल राज कपूर का पूरा परिवार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मिलने पहुंचा था। इस दौरान सभी ने राज कपूर और सिनेमा में उनके योगदान को याद किया था।
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