
नवाजुद्दीन सिद्दीकी।
अक्सर संघर्षों से भरे अतीत से ही खूबसूरत कहानियां निकलती हैं। ये कहानियां पिरो कर तैयार की जाती हैं। आज हम बॉलीवुड के एक ऐसे सितारे के बारे में बात करेंगे जो कभी वॉचमैन और केमिस्ट का काम करता था, लेकिन अब अपनी एक्टिंग के दम पर लाखों दिलों पर राज करता है। अगर आप सोच रहे हैं कि इस एक्टर के जीवन में भी गरीबी और गुरबत बचपन से रही होगी तो ऐसा नहीं है। ये एक्टर एक जमींदार परिवार में पैदा हुआ, लेकिन फिल्मों में आने के लिए इसने खुद दर-दर भटकना चुना। इस एक्टर ने परिवार से पैसे न लेने की ठानी और खुद के दम पर कुछ बनने की सोच रखी। वो कहते हैं सोना तो तप के ही निकलता है और ये साना भी संघर्षों की सीढ़ियों पर चढ़ते हुए अपने सपनों तक पहुंचा।
इस तरह जागी थी एक्टर बनने की चाहत
ये एक्टर कोई और नहीं बल्कि नवाजुद्दीन सिद्दीकी हैं, जिन्होंने फिल्मों में अपनी दमदार एक्टिंग से कई लोगों का दिल जीता है। नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने एक बार ह्यूमन्स ऑफ बॉम्बे के साथ अपने अभिनय के सफर के बारे में खुलकर बात की थी। उन्होंने याद किया कि अभिनेता बनने का विचार पहली बार वडोदरा में एक नाटक देखने के बाद उनके मन में आया था, जहां उन्होंने कॉलेज खत्म करने के बाद एक केमिस्ट के रूप में काम किया था। उन्होंने कहा, ‘हमारा परिवार एक साथ रामलीला नाटक देखता था। अभिनय से मेरा पहला सामना यहीं हुआ। मेरे एक दोस्त ने राम का किरदार निभाया था और उसे मंच पर देखकर मैं बहुत प्रभावित हुआ। मैं खुद राम की भूमिका निभाने की कल्पना करता था। कॉलेज के बाद मैंने वडोदरा में एक केमिस्ट के रूप में काम किया। वहां, मैंने पहली बार एक नाटक देखा। उस रात अभिनेता बनने का विचार एक सपना बन गया।’
बॉम्बे के बारे में थे ये विचार
नवाजुद्दीन ने बताया कि नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में दाखिला लेने के बाद वे मुंबई आ गए, लेकिन सपनों के शहर में ढलने में उन्हें लगभग एक महीने का समय लगा। उन्होंने बताया, ‘इसलिए मैंने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में पढ़ाई की और फिर वहां चला गया जहां अभिनय का सपना देखने वाला हर कोई जाता है – बॉम्बे… बॉम्बे के बारे में मेरी पहली धारणा यह थी कि यहां सब कुछ कितना तेज है। मुझे इस फास्ट पेस लाइफ के साथ चलने में एक महीने का समय लगा, मुझे लगा कि मैं कभी भी इसकी स्पीड से मेल नहीं खा पाऊंगा।’
इस तरह करते थे गुजारा
नवाजुद्दीन, एक किसान परिवार से आते हैं और अपने आठ भाई-बहनों के लिए मार्गदर्शक थे। उन्होंने बताया कि उन्हें मुंबई में रहने के लिए अक्सर दोस्तों से पैसे उधार लेने पड़ते थे। उन्होंने कहा, ‘मेरा परिवार गरीब नहीं था, लेकिन आर्थिक रूप से मैं मजबूत नहीं था और मैं घर से पैसे नहीं मांग सकता था। मैं अपने दोस्तों से पैसे उधार लेता था, यह कहकर कि मैं उन्हें 2 दिन में वापस कर दूंगा। दो दिन बाद मैं किसी और से पैसे उधार लेता और पहले वाले को पैसे वापस कर देता। मैं चार अन्य लोगों के साथ एक फ्लैट में रहता था। ये सब जीवन जीने के लिए था।’ उन्होंने आगे बताया, ‘मैंने अजीबोगरीब काम किए – कभी चौकीदार के रूप में, कभी धनिया बेचने के लिए। मैंने एक्टिंग सेमिनार भी आयोजित किए। मैं लगभग 100 ऑडिशन के लिए गया और मेरे सामने आने वाली हर एक भूमिका को स्वीकार किया, चाहे वह कितनी भी छोटी क्यों न हो। मुझे ‘सफलता’ मिलने में 12 साल लग गए। यह आसान नहीं था – संघर्ष सुंदर नहीं था, यह बस इतना ही था; एक संघर्ष।’
अब नहीं पहचान के मोहताज
बता दें, नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने ‘मुन्नाभाई एमबीबीएस’ में एक छोटी सी भूमिका निभाने से लेकर ‘लंचबॉक्स’ के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार जीतने तक का सफर तय किया। ‘सरफरोश’ में उन्हें किसी ने नोटिस नहीं किया, लेकिन बाद में गणेश गायतोंडे का उनका किरदार सोशल मीडिया की दुनिया में चर्चा में रहा। ‘तलाश’ में उनके चोर वाले किरदार को भी भूला नहीं जा सकता है। आज नवाजुद्दीन अपनी फिल्मोग्राफी के दम पर ही सबसे शानदार एक्टर कहलाते हैं। उनकी गिनती देश के सबसे शानदार एक्टर्स में होती है। ओटीटी से लेकर बड़े पर्दे तक उनकी एक अलग पहचान है।
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