
जावेद अख्तर।
हिंदी सिनेमा के दिग्गज स्क्रीनराइटर और लिरिसिस्ट जावेद अख्तर आए दिन सुर्खियों में रहते हैं। वह किसी भी मुद्दे पर खुलकर अपनी राय रखते हैं और ऐसा करने से जरा भी नहीं हिचकिचाते। अपने विचारों और बयानों को लेकर वह कई बार ट्रोल्स के निशाने पर भी आ चुके हैं, लेकिन वह उन्हें चुप कराना भी बखूबी जानते हैं। हाल ही में 15 अगस्त यानी स्वतंत्रता दिवस के मौके पर उन्होंने एक पोस्ट शेयर किया और हर भारतीय की तरह देश के प्रति अपना प्यार जाहिर किया। उन्होंने देश के शहीदों को याद करते हुए देश की जनता को एक संदेश भी दिया, लेकिन एक यूजर ने कमेंट करते हुए उन्हें ‘पाकिस्तानी’ बता दिया, जिस पर जावेद अख्तर ने भी करारा जवाब दिया।
जावेद अख्तर का पोस्ट
जावेद अख्तर ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर पोस्ट शेयर करते हुए लिखा- ‘मेरे सभी भारतीय बहनों और भाइयों को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह आजादी हमें थाली में परोसी नहीं गई। आज हमें उन लोगों को याद करना चाहिए और उन्हें सलाम करना चाहिए जो हमें आजादी दिलाने के लिए जेल गए और जो फांसी पर चढ़ गए। आइए हम यह सुनिश्चित करें कि हम इस अनमोल तोहफे को कभी न गंवाएं।’
यूजर ने किया ट्रोल
स्वतंत्रता दिवस के मौके पर शेयर किए गए पोस्ट पर कमेंट करते हुए एक यूजर ने जावेद अख्तर को पाकिस्तानी बताने की कोशिश की। यूजर ने कमेंट करते हुए लिखा- ‘आपका स्वतंत्रता दिवस तो 14 अगस्त (पाकिस्तान का स्वतंत्रता दिवस) है।’ ये कमेंट देखने के बाद जावेद अख्तर का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया और उन्होंने यूजर को जबरदस्त अंदाज में जवाब दिया।
जावेद अख्तर ने दिया जवाब
जावेद अख्तर भी खुद को पाकिस्तानी बताने वाले ट्रोल को जवाब देने से पीछे नहीं हटे। उन्होंने लिखा- ‘बेटा जब तुम्हारे बाप दादा अंग्रेज के जूते चाट रहे थे, मेरे बुजुर्ग देश की आजादी के लिए काला पानी में मर रहे थे। अपनी औकात में रहो।’ दरअसल, काला पानी अंडमान द्वीप समूह में स्थित सेलुलर जेल को संदर्भित करता है, जहां ब्रिटिश शासन के दौरान स्वतंत्रता सेनानियों को कठोर कारावास का सामना करना पड़ता था।
ट्रोल को जावेद अख्तर का जवाब
स्वतंत्रता सेनानी थे जावेद अख्तर के परदादा
बता दें, जावेद अख्तर के परदादा, फजल-ए-हक खैराबादी (1797-1861) एक जाने-माने भारतीय इस्लामी विद्वान, कवि और स्वतंत्रता सेनानी थे। जावेद अख्तर के परदादा भी ब्रिटिश शासन के विरोध में खड़े हुए थे और 1857 के दौरान भारतीय विद्रोह का समर्थन करते हुए उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक फतवा जारी किया, जिसके कारण उन्हें अंडमान द्वीप समूह में काला पानी की सजा के लिए भेज दिया गया, जहां उनका निधन हो गया। जावेद अख्तर के दादा मुज्तर खैराबादी और पिता जां निसार अख्तर भी प्रसिद्ध कवि थे और स्वतंत्रता, प्रतिरोध और सामाजिक न्याय के लिए अपनी रचनाओं के लिए मशहूर थे।
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