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बिहार की मिट्टी से उठे एक्टर दीपक सिंह को ‘छठ’ से मिली पहचान

बिहार की मिट्टी से उठे एक्टर दीपक सिंह को ‘छठ’ से मिली पहचान

Image Source : PRESS KIT
दीपक ठाकुर।

अभिनेता दीपक सिंह अपने सशक्त अभिनय और अलग-अलग फिल्मों में निभाए गए प्रभावशाली किरदारों के लिए जाने जाते हैं, इन दिनों अपनी हालिया रिलीज फिल्म ‘छठ’ को लेकर सुर्खियों में हैं। यह फिल्म Waves OTT पर रिलीज होते ही दर्शकों के बीच गहराई से जुड़ गई और अब इसने एक नई उपलब्धि हासिल की है। ‘छठ’ का चयन इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ इंडिया (IFFI), गोवा के लिए किया गया है।

बिहार की संस्कृति को दिखाती है ‘छठ’

भारत सरकार द्वारा आयोजित इफी न सिर्फ भारत का, बल्कि दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित फिल्म समारोहों में से एक है। इस मंच पर किसी फिल्म का चयन होना उसकी कलात्मक गहराई और संवेदनशील विषयवस्तु का प्रमाण होता है। और यही ‘छठ’ की असली पहचान है। एक ऐसी फिल्म जो बिहार की संस्कृति, लोकभावना और आस्था को पूरी सच्चाई के साथ पर्दे पर लाती है। राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता निर्देशक नितिन चंद्रा के निर्देशन में बनी ‘छठ’ उस लोक-संवेदना को दिखाती है जो आज के सिनेमा में कम दिखाई देती है। फिल्म में दीपक सिंह ने एक ऐसे आम इंसान का किरदार निभाया है, जो अपनी परंपराओं और भावनाओं के बीच संघर्ष करता है।

क्या है दीपक का कहना

दीपक कहते हैं, ‘हमने ‘छठ’ को सिर्फ एक कहानी के रूप में नहीं, बल्कि अपनी संस्कृति के सम्मान के रूप में बनाया। जब यह फिल्म इफी में चुनी गई तो लगा जैसे बिहार की मिट्टी की आवाज अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गूंज रही है। IFFI में ‘छठ’ की चर्चा विशेष रूप से इस बात के लिए की जा रही है कि यह फिल्म न केवल धार्मिक भावनाओं को, बल्कि सामाजिक और पारिवारिक रिश्तों की संवेदनशीलता को भी बहुत वास्तविक ढंग से सामने लाती है। यह फिल्म दर्शकों को यह महसूस कराती है कि छठ जैसे पर्व सिर्फ पूजा नहीं जीवन और आस्था की एक सुंदर कहानी हैं।

इन फिल्मों में किया काम

‘छठ’ के अलावा दीपक सिंह ने ‘देसवा’, ‘एक बुरा आदमी’, ‘आयाम’, ‘वंस अपॉन ए टाइम इन बिहार’, ‘द सुपर हस्बैंड’ और ‘खैरियत’ जैसी फिल्मों में अपनी गहरी छाप छोड़ी है। उनकी फिल्में सिर्फ मनोरंजन नहीं करतीं, बल्कि दर्शकों को सोचने पर मजबूर करती हैं। दीपक कहते हैं, ‘मेरे लिए सिनेमा समाज से जुड़ने का जरिया है। मैं चाहता हूं कि मेरी हर फिल्म एक संदेश छोड़े, चाहे वो आस्था की बात हो या इंसानियत की।’

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