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भोजपुरी सिनेमा को पहली फिल्म देने वाला एक्टर, मलेशिया-सिंगापुर की जेलों में रहा बंद

भोजपुरी सिनेमा को पहली फिल्म देने वाला एक्टर, मलेशिया-सिंगापुर की जेलों में रहा बंद

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नजीर हुसैन।

भोजपुरी सिनेमा में अब खेसारी लाल यादव, पवन सिंह और निरहुआ जैसे स्टार्स का दबदबा है। इनकी फिल्में, गाने आए दिन धूम मचाते रहते हैं। लेकिन, क्या आप उस स्टार के बारे में जानते हैं, जिसने भोजपुरी सिनेमा को पहली फिल्म दी और इस इंडस्ट्री को देश भर में पहचान दिलाने में सबसे अहम भूमिका निभाई। इस एक्टर को भोजपुरी सिनेमा का पितामह कहा जाता है, क्योंकि यही वो कलाकार हैं जिन्होंने इस इंडस्ट्री की नींव रखने में अहम भूमिका निभाई। इन्होंने देव आनंद की कई फिल्मों में काम किया और बॉलीवुड में कैरेक्टर आर्टिस्ट के रूप में पहचान बनाई। हम बात कर रहे हैं अभिनेता नजीर हुसैन की, जिन्होंने अपने अभिनय से खूब वाहवाही लूटी।

आजाद हिंद फौज का हिस्सा रहे नजीर हुसैन

नजीर भारतीय सिनेमा के सबसे महान अभिनेताओं में से हैं, जिन्होंने देश की आजादी के लिए भी लड़ाई लड़ी और आजाद हिंद फौज का हिस्सा रहे। इन्हें अंग्रेजों द्वारा फांसी की सजा भी सुनाई गई थी, लेकिन फांसी से पहले वह अंग्रेजों को चकमा देकर भाग निकले। उन्होंने अपने फिल्मी करियर में 500 से ज्यादा फिल्मों में काम किया, जिनमें ‘देवदास’, ‘ज्वेल थीफ’, ‘दो बीघा जमीन’, ‘राम और श्याम’ और ‘कश्मीर की कली’ जैसी फिल्मों के नाम शुमार हैं। अपने सालों के फिल्मी करियर में नजीर हुसैन सिर्फ सपोर्टिंग रोल में ही दिखाई दिए। किसी में उन्होंने पुलिसवाले की भूमिका निभाई तो किसी में पिता और किसी में चाचा।

नजीर हुसैन का जन्म

नजीर हुसैन का जन्म 15 मई 1922 को उत्तर प्रदेश के उसिया गांव में हुआ था और 16 अक्तूबर 1987 को वह ये दुनिया हमेशा-हमेशा के लिए छोड़ गए। नजीर के पिता भारतीय रेलवे में काम करते थे और उनकी बदौलत उन्हें भी भारतीय रेलवे में नौकरी मिल गई। लेकिन, मन ना लगने पर वह ब्रिटिश आर्मी में शामिल हो गए। उन्हें इस दौरान द्वितीय विश्व युद्ध की लड़ाई के लिए भेज दिया गया। उन्हें युद्ध के दौरान बंदी बना लिया गया और जेल में कैद कर दिया गया। कभी सिंगापुर तो कभी मलेशिया की जेल में बंद रहे।

जब भारत वापस लौटे नजीर हुसैन

जेल से छूटने के बाद जब वह भारत वापस आए तो नेताजी सुभाष चंद्र बोस से बेहद प्रभावित हुए और उन्हें अपना आदर्श मानने लगे और आजाद हिंद फौज का हिस्सा बन गए। भारत आने के बाद वह कुछ समय बेरोजगार रहे, लेकिन फिर उन्होंने थिएटर जॉइन कर लिया और इसी दौरान उनकी मुलाकात बिमल रॉय से हुई। बिमल रॉय ने उन्हें अपना असिस्टेंट बना लिया। वह उनके साथ लिखने में उनकी मदद करने लगे और धीरे-धीरे फिल्मों में अभिनय भी करने लगे। अपने फिल्मी करियर में वह देव आनंद की ज्यादातर फिल्मों में दिखाई दिए। बॉलीवुड में नाम कमाने के बाद उन्होंने भोजपुरी सिनेमा का रुख किया।

बॉलीवुड के बाद भोजपुरी सिनेमा का किया रुख

भोजपुरी सिनेमा का ख्याल दिमाग में आने के बाद उन्होंने पहली भोजपुरी फिल्म ‘मैया तोहे पियारी चढ़ाइबो’ लिखी। उन्होंने इस फिल्म में काम करने के साथ-साथ इससे जुड़ी बाकि जिम्मेदारियां भी संभालीं। ये भोजपुरी सिनेमा की पहली फिल्म थी और 1963 में रिलीज हुई। इसी फिल्म के रिलीज होने पर भोजपुरी सिनेमा का भी भविष्य दिखाई देने लगा और धीरे-धीरे उन्होंने ‘हमार संसार’ और ‘बलम परदेसिया’ जैसी फिल्मों के साथ भोजपुरी सिनेमा का नाम आगे बढ़ाया।

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