
बीआर चोपड़ा
बलदेव राज चोपड़ा का जन्म 22 अप्रैल 1914 को पंजाब के शहीद भगत सिंह नगर जिले के राहोन में हुआ था। बीआर के पिता विलायती राज चोपड़ा लोक निर्माण विभाग में कर्मचारी थे। बीआर चोपड़ा ने लाहौर में पंजाब विश्वविद्यालय से पढ़ाई पुरी की और अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. की डिग्री हासिल की। उनकी पहली नौकरी 1944 में लाहौर से निकलने वाली फिल्म-मासिक पत्रिका सिने हेराल्ड के लिए एक फिल्म पत्रकार के रूप में थी। बाद में, 1947 में ही उन्होंने अपनी पहली फिल्म ‘चांदनी चौक’ रिलीज की, जिसे आई.एस. जौहर ने लिखा था और इसमें नईम हाशमी और एरिका रुख्शी ने अभिनय किया था। सिनेमा जगत में अपना करियर बनाने के लिए, बीआर मुंबई चले गए। ब्लैक एंड व्हाइट जमाने के उसे खूबसूरत दौर में उन्होंने लोगों को धार्मिक और पारिवारिक मूल्यों वाली फिल्में दी। जिन्हें ऐतिहासिक फिल्मों के साथ ही महाभारत के लिए भी याद किया जाता है।
बड़े भाई की तरह मशहूर हुए यश चोपड़ा
बी आर चोपड़ा ने ‘महाभारत’ की कहानी को छोटे पर्दे पर कुछ इस तरह दिखाया की फिर कभी ऐसी पौराणिक कहानियां देखने को नहीं मिली। कोरोना लॉकडाउन के दौरान टीवी चैनल पर रामायाण और महाभारत सीरियल का प्रसारण फिर से हुआ था। इस दौरान दोनों सीरियल ने टीआरपी के मामले में सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए थे। आज ‘महाभारत’ से दुनिया भर में मशहूर हुए बी आर चोपड़ा की बर्थ एनिवर्सरी है। उनकी आखिरी फिल्म ‘भूतनाथ’ थी जो अमिताभ बच्चन के करियर की सुपरहिट फिल्मों में से एक इस थी। 5 नवंबर, 2008 को उनका 94 की उम्र में निधन हो गया। बता दें कि यश चोपड़ा एक निर्देशक और निर्माता बनने से पहले अपने भाई बी आर चोपड़ा के साथ सहायक निर्देशक के तौर पर काम करते थे। उन्होंने अपने भाई को निर्देशन में मदद की थी, लेकिन बाद में उनसे काम सिखाने के बाद उन्होंने अपनी खुद की फिल्में बनाने का फैसला लिया। यह फैसला यश चोपड़ा ने दिग्गज अभिनेत्री वेजयंती माला के कहने पर लिया था। उनकी कुछ प्रसिद्ध फिल्मों में ‘धूल का फूल’, ‘कभी-कभी’, ‘सिलसिला’, ‘चांदनी’ और ‘जब तक है जान’ शामिल हैं।
इन अवार्ड से नवाजे गए थे बीआर चोपड़ा
बीआर चोपड़ा को 2001 में भारत सरकार ने पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था जो भारत गणराज्य का तीसरा सबसे बड़ा नागरिक पुरस्कार है। उन्हें 3 राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिल चुके हैं। 1960 में, उन्होंने अपनी फिल्म ‘कानून’ के लिए हिंदी में सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म के लिए सर्टिफिकेट ऑफ मेरिट जीता। 1961 में, उन्हें फिल्म ‘धर्मपुत्र’ के लिए एक निर्माता के रूप में हिंदी में सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म के लिए राष्ट्रपति का रजत पदक मिला। 1998 में, उन्होंने भारतीय सिनेमा में अपने योगदान के लिए दादा साहब फाल्के पुरस्कार जीता। उनके नाम दो फिल्मफेयर पुरस्कार हैं – 1962 में फिल्म ‘कानून’ के लिए फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ निर्देशक पुरस्कार और 2003 में भारतीय सिनेमा में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार। 1998 में, उन्हें बॉलीवुड में लाइफटाइम अचीवमेंट के लिए कलाकार पुरस्कार मिला और 2008 में, उन्हें दादा साहब फाल्के अकादमी द्वारा फाल्के रत्न पुरस्कार मिला।
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