
12 एंग्री मैन
कोर्टरूम ड्रामा पर बनी फिल्में तो आपने बहुत देखी हैं। लेकिन हम आपको आज बताते हैं एक ऐसी सस्पेंस थ्रिलर फिल्म की कहानी जो 68 साल से सिनेमा की दुनिया में राज कर रही है। साल 1957 में रिलीज हुई ये हॉलीवुड फिल्म महज 20 एक्टर्स और पासिंग क्रू के साथ मिलकर बनाई गई थी। लेकिन इस फिल्म की क्वालिटी ऐसी है कि 68 साल बाद भी कोई फिल्म इसे मात नहीं दे पाई। इस फिल्म का नाम है ’12 एंग्री मैन’ और इस फिल्म ने रिलीज होते ही अवॉर्ड्स की झड़ी लगा दी थी। फिल्म ने 3 ऑस्कर नॉमिनेशन हासिल किए थे और दुनियाभर में 16 से ज्यादा खिताब अपने नाम किए थे।
सस्पेंस थ्रिलर की किंग है फिल्म
हॉलीवुड डायरेक्टर ‘सिडनी लुमेट’ (Sidney Lumet) की ये फिल्म साल 1957 में रिलीज हुई थी। फिल्म में हैनरी फोंडा, ली जे कॉब और मार्टिन बल्साम ने लीड रोल प्ले किए थे। फिल्म हर मिनट सस्पेंस और थ्रिल से भरी रही थी। महज 1 घंटे 36 मिनट की इस फिल्म ने अवॉर्ड्स की दुनिया में तहलका मचा दिया था। ऑस्कर में ही 3 नॉमिनेशन हासिल करने वाली इस फिल्म ने पूरी दुनिया से 16 अवॉर्ड्स अपने नाम किए थे। आज भी इस फिल्म को एक कल्ट क्लासिक माना जाता है। कोर्टरूम ड्रामा कॉन्सेप्ट पर बनी फिल्में आज भी इसकी बराबरी नहीं कर पाती हैं।
क्या है फिल्म की कहानी?
फिल्म की कहानी एक हत्या और कानून के दोराहे पर खड़े 12 लोगों की सोच और साइकलॉजी को एक्सप्लोर करती है। फिल्म की कहानी ही कोर्ट से शुरू होती है। कोर्ट में एक लड़के पर हत्या का आरोप है और कानूनन उसे सजा मिलने के लिए पेशी होती है। कोर्ट में कुछ वकील हैं और मामले पर सुनवाई शुरू होती है। कुछ तथ्यों और साक्ष्यों को देख जज फैसला लेने से पहले वकीलों को सोचने के बारे में कहता है और ब्रेक ले लेता है। इसके बाद केस से जुड़े कुल 12 वकील एक कमरे में एकट्ठा होते हैं। इसके बाद इन 12 वकीलों के बीच हत्या के मामले और उसके आरोपी के बारे में बहस शुरू होती है।
आखिरी 20 मिनट में खुलता है राज और उड़ जाते हैं होश
फिल्म की कहानी शुरू में तो काफी स्लो रहती है और धीरे चलती है। लेकिन जब 12 वकील लगातार इस मामले पर चर्चा शुरू करते हैं जो धीरे-धीरे कहानी बदलने लगती है। 12 वकीलों में से एक केवल 1 ऐसा रहता है जो ये विश्वास रखता है कि लड़के ने मर्डर नहीं किया है। वहीं दूसरे 11 लोग लड़के को आरोपी मानते हैं। इसके बाद शुरू होता है सबूतों का सिलसिला और बहस बढ़ने लगती है। धीरे-धीरे बहस और सबूतों को रीचेक किया जाता है और नतीजे बदलने लगते हैं। इकलौता वकील धीरे-धीरे दूसरे लोगों को अपने पाले में खींचता है और आखिर में पूरी कहानी पलट जाती है। फिल्म का सस्पेंस भी आखिरी 20 मिनट में खुलता है और लोगों के होश उड़ा देता है।
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