
प्रेम नजीर और शीला।
भारतीय सिनेमा की दुनिया में कुछ जोड़ियां सिर्फ फिल्में नहीं करतीं, वे इतिहास रचती हैं। दक्षिण भारतीय सिनेमा की एक ऐसी ही जोड़ी थी-शीला और प्रेम नजीर की। इन दोनों ने साथ मिलकर 130 फिल्मों में काम किया, जिनमें से 50 से अधिक फिल्में ब्लॉकबस्टर हिट रहीं। दोनों की जोड़ी कभी नहीं टूटा और इनकी बॉन्डिंग बेहद मजबूत रही। दोनों दर्शकों के दिलों में उतर गए और गहरी छाप भी छोड़ी। एक साथ सबसे ज्यादा फिल्मों में काम करने वाली ऑन-स्क्रीन जोड़ी के रूप में, गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में भी इस जोड़ी का नाम दर्ज है।
एक जोड़ी, जिसने पेश की मिसाल
इस शानदार साझेदारी की शुरुआत 1963 में आई फिल्म ‘काट्टुमैना’ से हुई। पहली ही फिल्म से इस जोड़ी ने ऐसा जादू बिखेरा कि दशकों तक दर्शक इनकी केमिस्ट्री के दीवाने रहे। ‘सेम्मीन’, ‘कल्लिचेल्लम्मा’, और ‘वेलुथा कत्रीना’ जैसी फिल्में आज भी सिनेमा प्रेमियों के लिए क्लासिक मानी जाती हैं। जहां प्रेम नजीर को मलयालम फिल्मों के एवरग्रीन हीरो के रूप में जाना जाता है, वहीं शीला ने उस दौर में एक अभिनेत्री के लिए असंभव मानी जाने वाली बुलंदियों को छुआ और वह सिर्फ नायिका नहीं रहीं, वे एक सशक्त रचनात्मक शक्ति बनकर लोगों के सामने आईं
ऐसे की काम की शुरुआत
24 मार्च 1948 को जन्मीं शीला सेलिन (जिसे हम शीला के नाम से जानते हैं) ने महज 13 साल की उम्र में रंगमंच से अभिनय की शुरुआत की। थिएटर में पहली बार अभिनेता एसएस राजेन्द्रन ने उन्हें मंच पर पेश किया। इसके बाद सिल्वर स्क्रीन पर उनकी धमाकेदार एंट्री हुई। साल 1962 में तमिल फिल्म ‘पासम’ में वो नजर आईं, जहां उन्होंने महान अभिनेता एमजीआर के साथ काम किया। उसी साल उन्होंने मलयालम फिल्मों में भी कदम रखा और जल्द ही मलयालम, तमिल, तेलुगु और उर्दू भाषाओं की सिनेमा इंडस्ट्री पर छा गईं। अगले दो दशकों में उन्होंने 475 से अधिक फिल्मों में अभिनय किया, एक ऐसा रिकॉर्ड जो आज भी कोई नहीं तोड़ सका।
शीला।
जीते ये अवॉर्ड
शीला न सिर्फ एक बेहतरीन अभिनेत्री थीं, बल्कि उन्होंने पटकथा लेखन और निर्देशन में भी अपने हुनर का लोहा मनवाया। उन्होंने ‘यक्षगानम’ और ‘सिकरंगल’ जैसी फिल्मों का निर्देशन किया, जो विषयों की गहराई और प्रस्तुति के लिए सराही गईं। उनकी चित्रकारी में भी रुचि रही। एक्ट्रेस ने 4 बार केरल राज्य फिल्म पुरस्कार जीता, 2005 में आई फिल्म अखाले के लिए 1 राष्ट्रीय पुरस्कार भी उनके नाम रहा। साल 2019 में जेसी डेनियल पुरस्कार, केरल सरकार द्वारा दिया जाने वाला सबसे प्रतिष्ठित फिल्म सम्मान उन्हें मिला।
संन्यास और फिर शानदार वापसी
1983 में जब शीला ने फिल्मी दुनिया से संन्यास लिया और ऊटी में बस गईं, तब लगा था कि एक युग का अंत हो गया, लेकिन 2003 में फिल्म ‘मनसिनाकरे’ से उनकी वापसी हुई और दो साल के भीतर ही उन्होंने यह साबित कर दिया कि प्रतिभा उम्र की मोहताज नहीं होती। उनका किरदार ‘चंद्रमुखी’ (2005) में अखिलांदेश्वरी के रूप में एक बार फिर दर्शकों के दिलों को छू गया। शीला और प्रेम नजीर की जोड़ी सिर्फ फिल्मों की सूची नहीं है, यह भारतीय सिनेमा की विरासत का ऐसा अध्याय है जो आज भी फिल्म छात्रों, इतिहासकारों और दर्शकों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
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