
दिलीप कुमार और सुचित्रा सेन।
बॉलीवुड और टॉलीवुड की चकाचौंध भरी दुनिया में ऐसे कई सितारे हुए हैं जिन्होंने शोहरत की ऊंचाइयों को छूने के बाद भी आत्मिक शांति की तलाश में अभिनय से दूरी बना ली। किसी ने संन्यास लिया, किसी ने धर्म का मार्ग चुना और कुछ ने पूरी तरह से खुद को आध्यात्म को समर्पित कर दिया। ऐसी ही एक अलौकिक छवि की धनी थीं हिंदी और बंगाली सिनेमा की दिग्गज अभिनेत्री सुचित्रा सेन। फिल्मी दुनिया में सफल करियर होने के बाद भी उन्होंने आध्यात्म में शांति की तलाश की। उन्होंने अपना करियर त्याग सादगी भरा जीवन अपना लिया और पूरी तरह से धर्म की राह में डूब गईं।
इन फिल्मों से मिली सुचित्रा को पहचान
1950 से लेकर 70 के दशक तक, सुचित्रा सेन का नाम परदे पर किसी जादू से कम नहीं था। उनकी गहरी आंखों और प्रभावशाली अभिनय ने लाखों दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। फिल्म ‘आंधी’ में संजीव कुमार के साथ उनकी भूमिका आज भी दर्शकों के दिलों में जीवंत है। ‘देवदास’ (1955), ‘बॉम्बे का बाबू’ (1960), ‘ममता’ (1966) जैसी फिल्मों में उन्होंने जो संवेदनशीलता और गरिमा दिखाई, जो उन्हें एक कालजयी अभिनेत्री बनाती है, लेकिन 1978 में जब उनके करियर पीक पर था और सितारे बुलंद थे तो उन्होंने फिल्मी दुनिया को अचानक ही अलविदा कह दिया। उनकी आखिरी फिल्म ‘प्रणय पाशा’ रही।
यहां देखें पोस्ट
जब फिल्मों से हुआ मोह भंद
इसके बाद वे अचानक लाइमलाइट से पूरी तरह गायब हो गईं। यह निर्णय जितना चौंकाने वाला था, उतना ही गहराई से आध्यात्मिक भी। उन्होंने कोलकाता से कुछ ही दूर बेलूर मठ और रामकृष्ण मिशन से जुड़कर खुद को एक साधक के रूप में ढाल लिया। सुचित्रा सेन के इस फैसले के पीछे सिर्फ संन्यास नहीं था, बल्कि आत्मा की पुकार थी। उनके एक करीबी मित्र गोपाल कृष्ण रॉय के अनुसार सुचित्रा सेन की एक बड़ी इच्छा थी कि वे मां शारदा देवी की भूमिका निभाना चाहती थीं। मां शारदा, जो संत रामकृष्ण परमहंस की पत्नी थीं और स्वयं एक आध्यात्मिक गुरु के रूप में पूजी जाती हैं, सुचित्रा सेन के लिए प्रेरणा का स्रोत थीं।
ग्लैमर से पूरी तरह फेरा मुंह
वे अकसर कहा करतीं, ‘अगर मुझे एक आखिरी भूमिका निभाने का अवसर मिले तो वह मां शारदा बनना होगा।’ दुर्भाग्यवश ये इच्छा अधूरी रह गई। अपने जीवन के अंतिम सालों में सुचित्रा सेन ने पूरी तरह से एकांत को अपना लिया। कोलकाता के दक्षिणी इलाके में स्थित अपने फ्लैट में वे बेहद साधारण जीवन जीने लगीं। न कोई सामाजिक कार्यक्रम, न मीडिया से संपर्क, हर चीज से उन्होंने दूरी बना ली थी। उन्होंने अपना ज्यादातर समय धार्मिक ग्रंथों के अध्ययन, ध्यान और भक्ति गीतों की मधुर स्वर लहरियों में बिताया।
कैसे बीता अंतिम वक्त
जब उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा और वे कोलकाता के बेल व्यू क्लिनिक में भर्ती हुईं, तब भी उनका अध्यात्म के प्रति समर्पण कम नहीं हुआ। उनके बिस्तर के पास मां शारदा की तस्वीर और रामकृष्ण मिशन के ग्रंथ रखे रहते थे। अस्पताल में भक्ति संगीत बजाना उनकी विशेष मांग थी और रामकृष्ण मिशन के भिक्षु अक्सर उन्हें मिलने आते, आशीर्वाद देते। इस असाधारण अभिनेत्री ने जो जीवन जिया, वह अभिनय के साथ-साथ आत्मा की खोज का भी एक सुंदर अध्याय था। सुचित्रा सेन न सिर्फ एक महान कलाकार थीं, बल्कि एक सच्ची साधिका भी थीं।
ये भी पढ़ें: हीरोइन बनने के लिए IIT को मारी ठोकर, फिर ग्लैमर की दुनिया से छूमंतर हुई ‘पापा कहते हैं’ की कंजी आंखों वाली हसीना
शाही परिवार की राजकुमारी थी हॉकी प्लेयर, फिर बनी शाहरुख खान की हीरोइन
Doonited Affiliated: Syndicate News Hunt
This report has been published as part of an auto-generated syndicated wire feed. Except for the headline, the content has not been modified or edited by Doonited