
चिराग पासवान।
बिहार की राजनीति में एक ऐसा नाम है जो पिछले कुछ वर्षों में तेजी से चमका है, चिराग पासवान। दिवंगत नेता रामविलास पासवान के बेटे चिराग आज एक केंद्रीय मंत्री हैं और राज्य की राजनीति में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करा चुके हैं। लेकिन यह दिलचस्प है कि राजनीति में कदम रखने से पहले चिराग की मंजिल बिल्कुल अलग थी। वह सत्ता के गलियारों में नहीं, बल्कि कैमरे की रोशनी में अपना भविष्य तलाशना चाहते थे। बचपन में परिवार वालों द्वारा प्यार से ‘दीपू’ बुलाए जाने वाले चिराग, रामविलास पासवान और उनकी दूसरी पत्नी रीना के इकलौते बेटे हैं। पिता के दुलार में पले-बढ़े चिराग का झुकाव बचपन से ही फिल्मों की ओर था। राजनीति का माहौल घर में हमेशा रहा, लेकिन चिराग की चाहत एक्टर बनने की थी।
फिल्मों में किस्मत आजमाने की कोशिश
राजनीति में आज भले ही चिराग पूरी तरह डूबे हों, पर एक समय था जब उनका पूरा ध्यान बॉलीवुड में करियर बनाने पर था। 2011 में उन्होंने कंगना रनौत के साथ अपनी पहली फिल्म ‘मिले न मिले हम’ की। यह फिल्म उनके सपनों की शुरुआत हो सकती थी, पर किस्मत ने यहां उनका साथ नहीं दिया। फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह पिट गई। रिपोर्ट्स के अनुसार फिल्म इतना खराब प्रदर्शन कर रही थी कि बिहार के कई मल्टीप्लेक्स मालिकों ने इसे तीन दिनों के भीतर ही अपने थिएटर से हटा दिया। तनवीर खान द्वारा निर्देशित और अनुज सक्सेना द्वारा निर्मित यह फिल्म चिराग के फिल्मी सफर की पहली और आखिरी यात्रा साबित हुई। इस असफलता के बाद चिराग ने फिल्मी दुनिया से दूरी बनाना ही बेहतर समझा।
क्यों छोड़ी फिल्मों की दुनिया?
एक इंटरव्यू में चिराग ने ईमानदारी से स्वीकार किया था कि उन्हें समय रहते समझ आ गया कि फिल्म इंडस्ट्री शायद उनके लिए नहीं बनी थी। उन्होंने कहा था, ‘मुझे महसूस हुआ कि मैं इस दुनिया के लिए बना ही नहीं हूं, और जब यह बात साफ़ हो गई तो मैंने इससे दूर होने का फैसला कर लिया।’
अब सियासत के सितारे
फिल्मों का दरवाजा बंद हुआ तो राजनीति का रास्ता खुल गया। पिता की विरासत और जनता के भरोसे पर चिराग ने राजनीति में कदम रखा और आज वह बिहार की सियासी जमीन पर मजबूत कद के साथ खड़े दिखाई देते हैं। 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी, लोक जनशक्ति पार्टी, इस बार एनडीए का हिस्सा है। गठबंधन में उन्हें 29 सीटें मिली हैं। अब सबकी नजर इस बात पर टिकी है कि उनकी पार्टी कितनी सीटों पर जीत दर्ज करती है। क्या चिराग इस बार बिहार की राजनीति में किंग मेकर बनकर उभरेंगे या कोई नया मोड़ उनकी राजनीतिक कहानी को दिशा देगा?
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