
क्या हैं सिनेमा की असली चुनौतियां?
पिछले कुछ समय में बॉलीवुड फिल्मों का क्रेज कहीं ना कहीं दर्शकों के बीच पहले की तुलना में कम हुआ है और दक्षिण भारतीय सिनेमा का क्रेज बढ़ा है। इंडिया टीवी के स्पेशल पॉडकास्ट ‘द फिल्मी हसल’ में विषेक चौहान ने दर्शकों के बीच बॉलीवुड फिल्मों के कम होते क्रेज के बारे में खुलकर बात की और इसके पीछे की वजह का भी खुलासा किया। उन्होंने फिल्मी दुनिया के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की। इस दिलचस्प बातचीत में उन्होंने कई खुलासे भी किए। इंडिया टीवी के पॉडकास्ट में अक्षय राठी के साथ बातचीत करते हुए विषेक चौहान ने सनी देओल की ‘गदर 2’ से जुड़ा किस्सा शेयर किया और बताया कि कैसे लगातार फ्लॉप होती बॉलीवुड फिल्मों के बीच दर्शकों ने इस फिल्म पर प्यार बरसाया। साथ ही उन्होंने इसके पीछे की वजह का भी खुलासा किया।
लोग मुझे कहते हैं सिनेमा मर चुका है- विषेक चौहान
विषेक चौहान ने इस बारे में बात करते हुए कहा- ‘हिंदी सिनेमा में एलीट मूवमेंट के चलते आम जनता कहीं पीछे छूट गई है। ऐसा नहीं है कि दर्शक फिल्में नहीं देख रहे। कभी ना कभी एक ऐसी फिल्म आती है जो दिखाती है कि संभावना अभी भी है। मैं आपको बताता हूं, बिहार में मेरे सिनेमा के पास ही एक थिएटर था जो बंद हो गया था। उनके पास कोई ऑडियंस नहीं थी। तभी गदर रिलीज हुई, उसने मुझे फोटोज भेजीं, हजार लोग अंदर और 2 हजार बाहर। ये कैसे हुआ? लोग मुझे कहते रहते हैं कि सिनेमा मर चुका है, सिनेमा अब काम नहीं कर रहा। लेकिन, जब एक अच्छी फिल्म आती है तो सारे रिकॉर्ड तोड़ देती है।’
अभी भी सिनेमा में दिलचस्पी रखते हैं लोग- विषेक चौहान
बाहुबली और जवान का उदाहरण देते हुए विषेक चौहान ने कहा – ‘बाहुबली, गदर और जवान जैसी फिल्मों ने हमे दिखाया है कि दर्शक अभी भी सिनेमा में दिलचस्पी रखते हैं। लेकिन, पिछले 15-20 सालों में क्या हुआ है ना कि जो कंटेंट हफ्ते दर हफ्ते आ रहा है, वह कुछ ऐसा है जो दर्शकों से कनेक्ट करने में असफल रहा है। अब सिनेमा आम दर्शकों की जगह शहरी अमीर घराने के लोगों पर ज्यादा फोकस हो गया है। फिल्मों में वो जो भाषा इस्तेमाल करते हैं, वो समझ के बाहर है। कई बार लोग मुझसे कहते हैं, ‘फिल्म तो समझ में ही नहीं आई। क्या बनाया है?’ और यहां से दर्शकों का जुड़ाव खत्म हो जाता है।’
कम होने लगी सिनेमाहॉल की संख्या
‘सिनेमा लोगों को एकजुट करने वाला होना चाहिए। डिजिटल प्लेटफॉर्म पर आप एक समूह को टारगेट करते हुए कंटेंट पेश कर सकते हैं, लेकिन सिनेमा में एकजुटता होनी चाहिए। ताकि, हर समूह के लोगों को ये समझ आए, वह जुड़ाव महसूस करें। सिनेमाघरों में रिलीज होने वाले कंटेंट में ऐसी भाषा इस्तेमाल होनी चाहिए जो निचले से निचले तबके के व्यक्ति को भी आसानी से समझ आ जाए। तभी आपको वो सफलता मिलेगी, जो आपको चाहिए। 2009 में जब मैं बिहार गया, मेरे एरिया में 100 से ज्यादा सिनेमाहॉल थे, लेकिन अब ये गिनती 8 पर सिमट गई है। ऐसा नहीं है कि लोगों ने फिल्म देखना बंद कर दिया है, लेकिन आपको ऐसा कंटेंट लेकर आना होगा, जो लोगों को सिनेमाहॉल तक खींचकर लाने वाला हो।’
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