
बॉलीवुड फिल्में बीते कुछ साल से बॉक्स ऑफिस पर संघर्ष कर रही हैं और अपनी सतही कहानियों के लिए काफी आलोचना के घेरे में रहती हैं। बॉलीवुड फिल्मों का बिजनेस अब केवल ब्रांड्स तक सिमटता जा रहा है और इससे गेंहूं के साथ घुन पिसने वाली स्थिति भी बन रही है। बॉलीवुड के इस बुरे दौर पर इंडिया टीवी के स्पेशल पॉडकास्ट ‘द फिल्मी हसल’ में इंडस्ट्री के विशेषज्ञों ने अपना ओपिनियन बताया। इस प्रोग्राम को अक्षय राठी ने होस्ट किया और विषेक चौहान, देवांग संपत और अमित शर्मा जैसे एक्सपर्ट ने हिस्सा लिया। इस बातचीत में विषेक चौहान ने बताया कि क्यों बॉलीवुड में एनिमेटिड फिल्में नहीं चल पा रही है। इतना ही नहीं क्यों हॉलीवुड की वैसी फिल्में जो अगर बॉलीवुड में बनी होती तो कभी न चल पातीं, इंडिया में मोटी रकम छाप ले रही हैं।
क्या बोले विषेक चौहान?
विषेक चौहान ने द हसल पॉडकास्ट में अक्षय राठी से बातचीत में बताया कि क्यों एनिमेटिड फिल्में भी बॉलीवुड में नहीं चल पा रही हैं। विषेक बताते हैं, ‘बॉलीवुड ऐसी जगह है जहां कि ऑडियंस एक जैसी नहीं है। यहां कई तरह के दर्शक हैं और अलग तरह की कहानियां चलती हैं। अगर हम हॉलीवुड में देखें तो एनिमेटेड फिल्में खूब चलती हैं। लेकिन बॉलीवुड में ऐसा नहीं है। इसके पीछे की एक वजह तो ये है कि लोगों के दिमाग में ये परसेप्शन बना हुआ है कि एनिमेटिड फिल्में बच्चों के लिए हैं। लेकिन ऐसा नहीं है एनिमेटिड फिल्में परिवार के साथ भी देखी जा सकती हैं।’ विषेक ने बताया कि बहुत अजीब बात है कि ओपेनहाइमर जैसी फिल्मों ने भारत में अच्छी कमाई की है। इतना ही नहीं बार्बी ने भी भारत में काफी सुर्खियां बनी हुई थी।
पर्सेप्शन का गेम बिगाड़ता है नंबर्स?
विषेक चौहान ने बताया कि ‘अब चीजें बदल रही हैं। क्योंकि लोगों का पर्सेप्शन सेट हो जाता है तो उसका असर देखने को मिलता है। लेकिन मुझे लगता है कि अब समय के साथ परिवर्तन देखने को मिलेगा। क्योंकि हमारे पास अब डाटा है और हम नए सिरे से बिजनेस को केलकुलेट कर सकते हैं। इसके पीछे की विज्ञान धीरे-धीरे अपनी जगह बना रही है। अब हम अपनी व्यूअरशिप देख सकते हैं। जैसे अगर कोई फिल्म है जो 10 करोड़ बार देखी गई है। लेकिन अब हम देख सकते हैं कि कहां के लोगों ने इसे देखा और क्यों देखा। ऐसी कौन सी वजहें रहीं जो एक फिल्म किसी विशेष क्षेत्र में अच्छी चली है।’
सिनेमा हॉल में गिरावट
विषेक ने सिनेमाघरों को लेकर भी अपनी बात कही। जिसमें उन्होंने कहा, ‘सिनेमा को लोगों से जोड़ना चाहिए। डिजिटल प्लेटफॉर्म पर आप एक समूह को टारगेट करके कंटेंट पेश कर सकते हैं, लेकिन सिनेमा में एकता होनी चाहिए। ताकि हर समूह के लोग इसे समझें और जुड़ाव महसूस करें। सिनेमाघरों में दिखाए जाने वाले कंटेंट की पहुंच सबसे कम आर्थिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्ति तक भी होनी चाहिए। तभी सिनेमा को वह सफलता मिलेगी जिसकी उसे तलाश है।’ उन्होंने आगे कहा, ‘जब मैं 2009 में बिहार गया था, तब मेरे क्षेत्र में 100 से अधिक सिनेमा हॉल थे, लेकिन अब यह संख्या घटकर 8 रह गई है। ऐसा नहीं है कि लोगों ने फिल्में देखना बंद कर दिया है, लेकिन आपको ऐसा कंटेंट लाना होगा जो लोगों को सिनेमा हॉल तक खींचे।’
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